Monday, July 22, 2013

पेचों-खम

जिंदगीभर कोइ गम तो ढो ता नही 
जख्म धो भी लेगा की दर्द धोता नही

खुदको कोस कर कहा मैने अपने अापसे
इसकदर कोइ अपनी जान खोता नही

हंस के उसने ब्याह का जिक्र सामने किया
हथेलीपे रखा कफन कोइ न्योता नही

तसल्लीके लिए ही बस कारीगर टिक गया
हरकोइ तख्तपर सुल्तान होता नही

अमन की चाह है तो,यार इश्क का सबक तु रट
खुदा के नाम पर कोइ खौफ बोता नही

ठोकरोंसे तर-ब-तर है हमारे पेचों-खम
हम तो सो जाएंगे ख्वाब सोता नही

उपज उपज के ये जमीं बंजरसी हो गइ
अाजकल याद में मैं भी रोता नहीं

- प्राजक्त ।२०।७।२०१३

5 comments:

  1. हंस के उसने ब्याह का जिक्र सामने किया
    हथेलीपे रखा कफन कोइ न्योता नही


    दोन क्षण ब्लॅंक गेले, पण जेव्हा कळला शेर तेव्हा लक्षात आलं की साली ही तर कट्यार आहे... घुसलीये आणि आरपार...

    अमन की चाह है तो,यार इश्क का सबक तु रट
    खुदा के नाम पर कोइ खौफ बोता नही

    m sharing this

    उपज उपज के ये जमीं बंजरसी हो गइ
    अाजकल याद में मैं भी रोता नहीं

    मेलो मी...
    दाद द्यायला तरी वाचकांना जिवंत ठेव अरे!!!

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  2. :) tahe dil se Shukriya yaara... i find this Blogging very interesting ... it reaches to selected ppl who कदर'स us ;)

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  3. दाद द्यायला तरी जीवंत ठेव ;)

    अगदी खरं बोललास आल्हाद !!

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  4. Prajakt, I guess you should think on the background color/picture of this blog.

    शब्द स्पष्ट दिसत नाहीत अरे ! :(

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  5. This comment has been removed by the author.

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